गुरु गोबिन्द सिंह जी के अनमोल विचार || guru gobind singh ji bachan

 

गुरु गोबिन्द सिंह जी के अनमोल विचार 

guru gobind singh ji bachan

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गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवनी के कुछ अंश 

गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: पौषशुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 22 दिसम्बर 1666- ਜਯੋਤੀ ਜੋਤ 7 अक्टूबर 1708 ) सिखों के दसवें गुरु थे। आपके पिता जी श्री गुरू तेग बहादुर जी के बलिदान के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को 10 वें गुरू बने। आप एक महान योद्धा, चिन्तक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ (पन्थ) की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

 

गुरु गोबिन्द सिंह ने पवित्र ग्रंथ (ग्रन्थ) गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में प्रतिष्ठित किया। बचित्तर नाटक उनकी आत्मकथा है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ (ग्रन्थ), गुरु गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है।

 

उन्होने अन्याय, अत्याचार और पापों का खत्म करने के लिए और गरीबों की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' (पूरे परिवार का दानी ) भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले, आदि कई नाम, उपनाम उपाधियों से भी जाने जाते हैं।

 

गुरु गोविन्द सिंह जहाँ विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

 

उन्होंने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है।  अधिक जानकारी

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