हनुमान जी के बारे में शक्तिशाली प्रेरणादायक उपदेश || Thoughts of devotees about Hanuman ji

हनुमान जी के बारे में शक्तिशाली प्रेरणादायक उपदेश
 Thoughts of devotees about Hanuman ji
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हनुमान जी के बारे में शक्तिशाली प्रेरणादायक उपदेश
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हनुमान जी के बारे में विवरण हनुमान . भगवान श्रीराम के परमभक्त(संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति के नाम से भी जानते है।) सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में एक हैं। वह भगवान शिवजी के सभी अवतारों में सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे श्रीराम के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान जी को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नन्दन का अर्थ बेटा है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नन्दन" (हवा का बेटा) हैं। मान्यता है कि श्री बाला जी महाराज का जन्म हरियाणा के कैथल जिले में हुआ था जिसका प्राचीन नाम कपिस्थल था। हनुमानजी का आदि राम की शरण ग्रहण करना हनुमान जी राम जी को सुप्रीम मानकर भक्ति करते थे, कबीर के अनुसार जीवन के अंतिम क्षणों में उन्हें आदिराम के बारे में पता चला तब गुरू शरण में जाकर भक्ति की और कल्याण कराया। पूरी कथा इस प्रकार है कबीर मत के अनुसार त्रेता युग में जब रावण ने सीता जी का हरण कर लिया तो उनकी खोज शुरू हुई। हनुमान जी ने सीताजी का पता लगाया कि वह रावण की कैद में है। सीताजी ने हनुमान को एक कंगन दिया था कि यह श्री राम को दिखा देना। जब वे सीता जी की खोज कर के लंका से वापिस आ रहे थे तो समुद्र को आकाश मार्ग से पार करके एक पर्वत के ऊपर उतरे। वहाँ पास ही एक बहुत सुंदर निर्मल जल का सरोवर था। सुबह-सुबह की बात है। जो कंगन सीता जी ने हनुमानजी को दिया था, हनुमान जी उसको एक पत्थर पर रख कर स्नान करने लगे। उसी समय एक बंदर आया और कंगन उठा कर भाग लिया। हनुमान जी की नज़र जैसे सर्प की मणि पर होती है ऐसे कंगन पर थी। हनुमान जी पीछे दौड़े। बंदर भाग कर एक आश्रम में प्रवेश कर गया और उस कंगन को एक मटके में दाल दिया। वह बहुत बड़ा घड़ा था। जब उस कुम्भ में हनुमान जी ने देखा तो ऐसे-ऐसे कंगनों से वह घड़ा लगभग भरा हुआ था। हनुमान जी ने कंगन उठा कर देखा तो सारे ही कंगन एक जैसे थे। भेद नहीं लग रहा था।असमंजस में पड़ गये। सामने एक महापुरुष (ऋषि) आश्रम में बैठे हुए दिखाई दिए। उनके पास जाकर प्रार्थना की कि हे ऋषिवर! मैं सीता माता की खोज करने गया था और सीता जी का पता लग गया है। एक कंगन माता ने मुझे दिया था। उसको रखकर स्नान करने लग गया। बंदर ने शरारत की और कंगन उठाकर इस मटके में डाल दिया। वह ऋषि उस समय मुनिन्द्र नाम से आये कबीर साहिब थे। मुनिन्द्र साहिब ने कहा कि आओ भक्त जी, दूध पीयो, बैठो विश्राम करो। हनुमान जी बोले कि काहे का दूध, मेरी तो सारी मेहनत विफल हो गयी। इस कुम्भ के अंदर एक ही जैसे सभी कंगन नज़र आ रहे हैं। मुझे पहचान नहीं हो रही, वह कंगन कौन सा है? मुनिन्द्र जी बोले कि आपको हो भी नहीं सकती। यदि पहचान हो जाय तो आप इस काल के लोक में दुखी नहीं होते, यह कठिनाइयाँ नहीं आती। मुनिन्द्र (कबीर साहिब) जी बोले की हनुमान जी आप कौन से राम की बात कर रहे हो? कौन सीता? मुझे यह तो बता। हनुमान जी बोले कि आप अजीब बात कर रहे हो। सारे के सारे वन तथा संसार में एक चर्चा हो रही है। आप को मालुम ही नहीं? भगवान रामचन्द्र जी ने राजा दशरथ के घर पर जन्म लिया है। उनकी पत्नी का रावण ने अपहरण कर रखा है, आपको नहीं मालूम? मुनिन्द्र जी कहते हैं कि कौन-कौन से नंबर के राम की मालूम करूँ? हनुमान जी कहते हैं की राम का भी कोई नंबर होता है? मुनिन्द्र साहिब ने कहा की ऐसे-ऐसे यह दशरथ के पुत्र रामचन्द्र 30 करोड़ हो चुके हैं और यह सभी जन्म और मृत्यु के अंदर हैं। यह पूर्ण परमेश्वर नहीं है। यह केवल तीन लोक के प्रभु हैं। इनके उपासक भी मुक्त नहीं हैं। हनुमान जी महसूस करते है कि यह महात्मा बहुत अजीबो गरीब बात कर रहे है। हनुमान जी बोले कि क्या श्री रामचन्द्र जी तीस करोड़ बार आ चुके हैं? मुनिन्द्र (कबीर) जी ने कहा - हाँ पुत्र, श्री राम अपना जीवन पूरा करके जब समाप्त हो जायेगा उसके बाद फिर नई आत्मा ऐसे ही जन्म लेती रहती हैं और आती रहती हैं। ऐसे ही तेरे जैसे हनुमान न जाने कितने हो लिए। यह तो इस ब्रह्म (काल भगवान) ने एक फिल्म बना रखी है। उसमें पात्र आते रहते हैं और इसी का प्रमाण यह कुम्भ दे रहा है। इसमें जितने भी कंगन हैं यह आप ही जैसे हनुमान आते हैं और वह बंदर इसमें कंगन डालता है। इस कुम्भ के अंदर मेरी कृपा से एक शक्ति है कि जो भी वस्तु इसमें डाली जाती है यह वैसी ही एक और बना देता है। ऐसे ही इस रूप का दूसरा कंगन तैयार कर देता है। आप इस में से कंगन ले जाइए और दिखाईये अपने राम जी को, ज्यों का त्यों मिलेगा। फिर कहा कि हनुमान जी सतभक्ति करो। यह भक्ति तुम्हारी परिपूर्ण नहीं है। यह काल जाल से आपको मुक्त नहीं होने देगी। हनुमान जी बोले कि अब मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपके साथ वार्ता करूँ, परन्तु मुझे आपकी बातें अच्छी नहीं लग रही हैं। कंगन उठा कर चले गए। कुछ दिनों के बाद हनुमान जी अयोध्या त्यागकर एक पहाड़ पर भजन कर रहे थे। यही दयालु परमेश्वर अपनी हंस आत्मा के पास गए तथा कहा की राम-राम भक्त जी। हनुमान जी ने ऋषि की तरफ देखा। फिर हनुमान जी बोले कि मुझे ऐसा लग रहा है कि आपको कहीं पर देखा हो। तब मुनिन्द्र साहिब बोले कि - हाँ, हनुमान। पहली बार तो तूने मुझे वहां पर देखा जब आप सीता की खोज करके वापिस आ रहे थे और कंगन को किसी बंदर ने मटके में दाल दिया था। दूसरी बार वहाँ पर देखा था जब श्री रामचन्द्र जी का समुद्र पर पुल नहीं बन रहा था। उस समय मैंने अपनी कृपा से पुल बनवाया था। मैं वही मुनिन्द्र ऋषि हूँ। हनुमान जी को याद आया। कहा की - आओ ऋषि जी, बैठो। क्योंकि हनुमान जी बहुत प्रभु प्रेमी और अतिथि सत्कार करने वाले महापुरुष थे। कहा की अब पहचान लिया। मुनिन्द्र जी फिर प्रार्थना करते हैं कि हनुमान जी जो आप साधना कर रहे हो, यह पूर्ण नहीं है। यह तुम्हें पार नहीं होने देगी। यह सर्व काल जाल है। सारी "सृष्टि रचना" सुनाई। हनुमान जी बहुत प्रभावित होते हैं। फिर भी कहा कि मैं तो इन प्रभु से आगे किसी को नहीं मान सकता। हमने तो आज तक यही सुना है कि यह तीन लोक के नाथ विष्णु हैं और उन्हीं का स्वरुप रामचन्द्र जी आये हैं। अगर मैं आपके सतलोक को अपनी आँखों देखूं तो मान सकता हूँ। कबीर साहिब ने हनुमान जी को दिव्य दृष्टि दी और स्वयं आकाश में उड़कर सतलोक पहुँच गए। पृथ्वी पर बैठे हनुमान जी को सब वहाँ सतलोक का दृश्य दिखाया। साथ में यह तीन लोक के भगवानों के स्थान दिखाए और वह काल दिखाया जहाँ पर एक लाख जीवों का प्रतिदिन आहार करता है। उसी को ब्रह्म, क्षर पुरुष तथा ज्योति स्वरूपी निरंजन कहते हैं। तब हनुमान जी ने कहा कि - प्रभु, नीचे आओ। क्षमा करना दास ने आपके साथ अभद्र व्यवहार भी किया होगा। दास को शरण में लो। हनुमान जी को प्रथम नाम दिया, फिर सत्यनाम दिया और मुक्ति का अधिकारी बनाया। प्रमाण के लिए देखें - कबीर सागर, हनुमान बोध । ठाकुरद्वारा श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर, यमुनानगर में स्थित शिव जी के रुद्रावतार हनुमान जी की प्रतिमा हनुमान के द्वारा सूर्य को फल समझना हनुमान सूरज को फल मानते हुए पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हैं। इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।" राहु की यह बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये। हनुमान का नामकरण इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत: में हनु ) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, वानरकुलटिन थोंडईमान, शंकर सुवन आदि। हनुमान जी का रुप हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है। ग्रंथों हिन्दू धर्म रामायण रामायण की पांचवीं पुस्तक, सुंदरकांड, हनुमान पर केंद्रित है। असुरराज रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था, जिसके बाद 14 साल के वनवास के आखिरी साल में हनुमान राम से मिलते हैं। अपने भाई लक्ष्मण के साथ, राम अपनी पत्नी सीता को खोज रहे हैं। यह और संबंधित राम कथाएं हनुमान के बारे में सबसे व्यापक कहानियां हैं। रामायण के कई संस्करण भारत के भीतर मौजूद हैं। ये हनुमान, राम, सीता, लक्ष्मण और रावण के रूपांतर प्रस्तुत करते हैं। वर्ण और उनके विवरण अलग-अलग हैं, कुछ मामलों में काफी महत्वपूर्ण हैं। महाभारत महाभारत एक और प्रमुख महाकाव्य है जिसमें हनुमान का संक्षिप्त उल्लेख है। पुस्तक 3 में, महाभारत के वाना पर्व, उन्हें भीमसेन के सौतेले बड़े भाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो उनसे कैलाश पर्वत पर जाने के दौरान गलती से मिलते हैं। असाधारण ताकत का आदमी भीम, हनुमान की पूंछ को हिलाने में असमर्थ है, जिससे उन्हें एहसास होता है और हनुमान जी की ताकत को स्वीकार करते है। यह कहानी हनुमान चरित्र के प्राचीन कालक्रम से जुड़ी है। यह कलाकृति और राहत का एक हिस्सा भी है जैसे विजयनगर खंडहर। अन्य साहित्य रामायण और महाभारत के अलावा, हनुमान का उल्लेख कई अन्य ग्रंथों में किया गया है। इनमें से कुछ कहानियाँ पहले के महाकाव्यों में उल्लिखित उनके कारनामों से जुड़ती हैं, जबकि अन्य उनके जीवन की वैकल्पिक कहानियाँ बताती हैं। स्कंद पुराण में रामेश्वरम में हनुमान का उल्लेख है। शिव पुराण के एक दक्षिण भारतीय संस्करण में, हनुमान को शिव और मोहिनी (विष्णु का महिला अवतार) के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है, या वैकल्पिक रूप से उनकी पौराणिक कथाओं को स्वामी अय्यप्पा के मूल के साथ जोड़ा या विलय कर दिया गया है, जो दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय हैं । हनुमान चालीसा 16 वीं शताब्दी के भारतीय कवि तुलसीदास ने हनुमान को समर्पित एक भक्ति गीत हनुमान चालीसा लिखा था। उन्होंने हनुमान के साथ आमने-सामने मुलाकात करने का दावा किया। इन बैठकों के आधार पर, उन्होंने रामचरितमानस, रामायण का एक अवधी भाषा संस्करण लिखा। देवी अथवा शक्ति के साथ संबंध हनुमान और देवी काली के बीच संबंध का उल्लेख कृतिवसी रामायण में मिलता है। उनकी बैठक रामायण के युधिष्ठिर में माहिरावन की कथा में होती है। माहिरावन रावण का विश्वसनीय मित्र / भाई था। अपने बेटे, मेघनाद के मारे जाने के बाद, रावण ने राम और लक्ष्मण को मारने के लिए पाताललोक के राजा अहिरावण और महिरावण की मदद ली। एक रात, अहिरावण और महिरावण ने अपनी माया का उपयोग करते हुए, विभीषण का रूप धारण किया और राम के शिविर में प्रवेश किया। वहाँ उन्होंने वानर सेना पर निंद्रा मंत्र डाला, राम और लक्ष्मण का अपहरण किया और उन्हें पाताल लोक ले गए। वह देवी के एक अनुगामी भक्त थे और रावण ने उन्हें अयोध्या के बहादुर सेनानियों को देवी को बलिदान करने के लिए मना लिया, जिसके लिए माहिरावन सहमत हुए। हनुमान ने विभीषण से पाताल का रास्ता समझने के बाद अपने प्रभु को बचाने के लिए जल्दबाजी की। अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने मकरध्वज से मुलाकात की, जिन्होंने हनुमान के पुत्र होने का दावा किया, उनके पसीने से पैदा हुआ था जो एक मत्स्य (मछली) द्वारा खाया गया था। हनुमान ने उसे हरा दिया और उसे बांध दिया और महल के अंदर चले गए। वहाँ उसकी मुलाकात चंद्रसेन से हुई जिसने अहिरावण और महिरावण को मारने के तरीके के बारे में बताया। तब हनुमान ने मधुमक्खी के आकार को छोटा किया और महा-काली की विशाल मूर्ति की ओर बढ़ गए। उसने उसे राम को बचाने के लिए कहा, और भयंकर माता देवी ने हनुमान की जगह ले ली, जबकि वह नीचे फिसल गया था। जब महावीर ने राजकुमार-ऋषियों को झुकने के लिए कहा, तो उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि वे शाही वंश के थे और झुकना नहीं जानते थे। इसलिए जैसे ही अहिरावण माहिरावण उन्हें झुकाने का तरीका दिखाने वाले थे, हनुमान ने अपना पंच-मुख रूप (गरुड़, नरसिंह, वराह, हयग्रीव और स्वयं के सिर के साथ) लिया: प्रत्येक सिर एक विशेष प्रतीक को दर्शाता है। हनुमान साहस और शक्ति, नरसिंह निडरता, गरुड़। जादुई कौशल और नाग के काटने, वराह स्वास्थ्य और भूत भगाने और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति), 5 दिशाओं में 5 तेल के दीपक फूँक दिए और अहिरावण तथा माहिरावण का सिर काट दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। बाद में उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को अपने कंधों पर लिया और जब उन्होंने श्री राम के बाहर उड़ान भरी तो उन्होंने मकरध्वज को अपनी पूंछ से बंधा देखा। उन्होंने तुरंत हनुमान को उन्हें पाताल का राजा बनाने का आदेश दिया। अहिरावण की कहानी पूरब के रामायणों में अपना स्थान पाती है। यह कृतिबश द्वारा लिखित रामायण के बंगाली संस्करण में पाया जा सकता है। इस घटना के बारे में बात करने वाले मार्ग को 'महिराबोनरपाला' के नाम से जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि हनुमान से प्रसन्न होने के बाद, देवी काली ने उन्हें अपने द्वार-पाल या द्वारपाल होने का आशीर्वाद दिया और इसलिए देवी के मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव और हनुमान पाए जाते हैं। wikipedia के सौजन्य से


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